हाय महँगाई
पेट्रोल पंप पर तेल भराते समय सहसा ही नजर लगे पोस्टर पर मुस्कुराते देश की माननीय प्रधानमंत्री की ओर चली गई। मंद-मंद मुस्कान वाले चेहरे को देखकर मानों पेट्रोल-डीजल से लेकर रसोई गैस तक की मंहगाई का दर्द कहीं काफूर हो चला हो। बाइक में 100 रुपये प्रति लीटर का पेट्रोल भरावकर ऐसा लगा मानों जैसे मैंने सियाचीन व कारगिल की पहाडियों पर तैनात भारतीय जवानों के लिए दुश्मन से लड़ने के लिए गोलियों का इंतजाम कर दिया हो या फिर उस गांव की कच्ची पगडंडी जिस पर मानसून के दौरान तालाब सा का नजारा दिखाई पड़ता है उसके लिए पक्की सड़क का बंदोबश्त कर डाला हो। गर्व से लबरेज मैं जैसे ही आगे बढा तो सरकारी दफ्तर के बाहर वाली दीवार पर मुफ्त वैक्सीन के लिए लगे 'धन्यवाद मोदी जी' के पोस्टर को देखकर मैं अपना मस्तक झुकाने से ना रोक सका। चहुंओर जिधर नजर दौडाओं ऊधर ही सरकार द्वारा किए जा रहे विकास कार्यों के पोस्टर लगे दिखाई पड़ते है। कहां है मंहगाई? मैं उन लोगों से पुछना चाहता हूं जो पेट्रो पदार्थों की बढ़ती कीमतों का रोना रो रहे हैं और देश की आम जनता को गर्व का एहसास होने के बजाय उन्हें भ्रम में डाल रहे है कि सरकार द्वारा उन्हें लूटा जा रहा है। यदि देशवासी देश की प्रगति के लिए या फिर देशहित के लिए मंहगे पेट्रों पदार्थों को नहीं खरीद सकते तो उन्हें कहीं और चले जाना चाहिए। चाणक्य ने भी कहा है कि जाति हित से बड़ा होता है समाज हित और समाज हित से बड़ा होता है राज्य का हित और इन सबमें सबसे बड़ा होता है राष्ट्र हित। देश के प्रभुद्धजनों का महंगाई का रोना रोते रहना कदापि ठीक नहीं। उन्हें अपने आपको और देश की जनता को समझान और समझाना चाहिए कि देश में विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चल रहा है। जिसमें देश की गरीब से लेकर अमीर जनता तक को मुफ्त में टीका लगाया जा रहा है। जिसक लिए सरकार को पैसा चाहिए। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की आमदनी का एक मात्र जरिया टैक्स ही तो है। यदि सरकार यहां से आमदनी नहीं करेगी तो फिर कहां से करेगी। और फिर यदि सरकार ने कुछ चीजों पर टैक्स की दरों में इजाफा कर भी दिया तो क्या गुनाह कर दिया। आखिर कब तक देश की जनता कई सालों तक टैक्स की एक ही दरों पर भुगतान करती रहेगी। आखिर देश की जनता को भी यह एहसास होना चाहिए कि देश तरक्की कर रहा है। विकसित देशों में भी टैक्स की दरें बढाई जाती है। वैसे भी हमारे देश में टैक्स देने वाले है ही कितने? 135 करोड़ की आबादी में से मुश्किल से 4 से 5 प्रतिशत लोग ही तो इनकम टैक्स देते है। इस पर यदि सरकार ने पेट्रों पदार्थों में ड्यूटी बढाकर अपनी आमदनी में इजाफा कर भी लिया तो कौन सा पहाड़ टुट पड़ा। सरकार सड़के एवं लोक कल्याणकारी योजनाएं भी तो चला रही है। देश के गरीब और जरूरतमंद लोगों को मुफ्त राशन दे रही है। उसके लिए भी तो पैसा चाहिए। मै देशवासिोयं से पूछना चाहता हूं कि वे लोग बताए की इसके लिए पैसा कहां से आएगा। आखिर सरकार की कोई ऊपरी आमदनी तो है नहीं कि वह वहां से फंड जुटा कर देश के लोगों का पेट पाल लें।
Bahut badhiya!!!!
ReplyDeleteNice thinking
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